Sunday, 22 July 2018

उस चित्र की चर्चा..

मेरा चित्र अभी तक मेरी कल्पना में ही बसा हुआ है. मैं अपने उस चित्र की चर्चा करना चाहता हूँ, जो अभी तक बनाया नहीं गया. संघर्षो भाग्यों की विविधताओं और मानवीय आवेगों से परिपूर्ण इस जटिल ज़िन्दगी को क्या मैं रंगों में ढाल सकता हूँ? मैं इस चित्र को बनाये बिना नहीं रह सकता...कितना चिंतन कितनी व्याकुलता ह्रदय को उद्वेलित किये हुए है...कभी कभी मैं पहाड़ों को उलट देने के लिए अपने को तत्पर पाता हूँ, तब मैं सोचता हूँ-जीवन को देखो, सीखो और चुनो...मैं बहुत सी बातें अपने आप से कहता हूँ पर हेमशा वे अमली शक्ल ले पाती हों, ऐसा नहीं है ...अब भी मैं नहीं जानता की कौन सा चित्र बनाऊंगा. परन्तु मैं एक बात पक्की तरह से जानता हूँ - मैं अपनी राह ढूंढ लूँगा.

No comments:

Post a Comment